खुद की हक़ीक़त को अनसुना सा कर दूँ, पर,
तेरी रूह की आरज़ू की मुझको खबर है.
तेरी छुअन को कैसे कुरेदूँ ना,
तेरा नूर-ए-एहसास ही इस कदर है.
This shall be home to hindi poems only.
खुद की हक़ीक़त को अनसुना सा कर दूँ, पर,
तेरी रूह की आरज़ू की मुझको खबर है.
तेरी छुअन को कैसे कुरेदूँ ना,
तेरा नूर-ए-एहसास ही इस कदर है.
बंदगी में रब्ब की वादा-खिलाफी नहीं होती,
मसरूफियत यार के नाम की कभी काफी नहीं होती.
दरिया-ए-इश्क़ की गहरायी को माप पाया है कौन,
इसमें बेपरवाह जुनूनीयत तो है, पर… माफ़ी नहीं होती.