नूर-ए-एहसास

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खुद की हक़ीक़त को अनसुना सा कर दूँ, पर,

तेरी रूह की आरज़ू की मुझको खबर है.

तेरी छुअन को कैसे कुरेदूँ ना,

तेरा नूर-ए-एहसास ही इस कदर है.

इश्क़ में माफ़ी नहीं होती

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बंदगी में रब्ब की वादा-खिलाफी नहीं होती,

मसरूफियत यार के नाम की कभी काफी नहीं होती.

दरिया-ए-इश्क़ की गहरायी को माप पाया है कौन,

इसमें बेपरवाह जुनूनीयत तो है, पर… माफ़ी नहीं होती.