चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।
पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।
वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,
पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।
चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।
पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।
वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,
पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।