बंदगी में रब्ब की वादा-खिलाफी नहीं होती,
मसरूफियत यार के नाम की कभी काफी नहीं होती.
दरिया-ए-इश्क़ की गहरायी को माप पाया है कौन,
इसमें बेपरवाह जुनूनीयत तो है, पर… माफ़ी नहीं होती.
बंदगी में रब्ब की वादा-खिलाफी नहीं होती,
मसरूफियत यार के नाम की कभी काफी नहीं होती.
दरिया-ए-इश्क़ की गहरायी को माप पाया है कौन,
इसमें बेपरवाह जुनूनीयत तो है, पर… माफ़ी नहीं होती.