बेसब्र

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दिखती है कतरों में, धुंधले ख़्वाब सी तू है।

नशा देती है शराब सा, नायाब भी तू है।।

बेसब्र इस क़दर कि तेरा आगोश तलाशूं, सुकून के लिए।

मेरा सुकून भी तू, ज़िद्द का सैलाब भी तू है।।

ग़लतफहमी

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माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।

उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।

जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,

“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।

तेरी दूरियों की वजह से

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सब सुनसान है यहां, तेरी दूरियों की वजह से.

इक तूफाँ है मेरे अंदर, तेरी दूरियों की वजह से.

सैलाब-ए-जज़्ब का रेशमी एहसास नदारद है मेरे आगोश से,

सर्द शाम की तपिश ले आ, जो दूर है… तेरी दूरियों की वजह से.

When distance starts taking a toll on your emotions. Is it really the distance to be blamed or the people?

सैलाब-ए-जज़्ब = Storm of emotions