माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।
उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।
जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,
“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।
माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।
उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।
जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,
“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।