जज़्ब पर मेरे सवाल कर गए, जाते जाते।
खुशहाल था ज़हन मेरा, बदहाल कर गए, जाते जाते।
मासूम था वो कातिल, उसकी ख़ता नहीं, यारों!
हम भी तो मासूम के सवाल से मलाल कर गए, जाते जाते।
जज़्ब पर मेरे सवाल कर गए, जाते जाते।
खुशहाल था ज़हन मेरा, बदहाल कर गए, जाते जाते।
मासूम था वो कातिल, उसकी ख़ता नहीं, यारों!
हम भी तो मासूम के सवाल से मलाल कर गए, जाते जाते।
रूह का सरल, रब्ब का बंदा था तू,
दर्द तो था, पर दिल से ज़िंदा था तू।
खुश हूं कि तू अब आबाद है।
जहां भी है, तू ज़िंदाबाद है।
माँ का लाडला, उसकी ज़िन्दगी का खूंटा था.
उसकी सुबह-शाम, दिन और रात, कुछ ना तुझसे छूटा था.
वो रोती होगी कि तू चला गया.
वो दिल ना समझेगा कि तू भला गया.
खुश हूं कि तू अब आबाद है।
जहां भी है, तू ज़िंदाबाद है।
माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।
उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।
जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,
“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।
चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।
पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।
वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,
पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।