माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।
उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।
जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,
“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।
माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।
उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।
जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,
“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।
सब सुनसान है यहां, तेरी दूरियों की वजह से.
इक तूफाँ है मेरे अंदर, तेरी दूरियों की वजह से.
सैलाब-ए-जज़्ब का रेशमी एहसास नदारद है मेरे आगोश से,
सर्द शाम की तपिश ले आ, जो दूर है… तेरी दूरियों की वजह से.
When distance starts taking a toll on your emotions. Is it really the distance to be blamed or the people?
सैलाब-ए-जज़्ब = Storm of emotions