हिज्र

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हिज्र में हैं जनाब, ज़र्रा-ज़र्रा चुभन भी होंगी।

तेरे जाने से आंखे खुश्क हैं, पर नम भी होंगी।।

ना टूटने का क़रार याद है हमें, बस सांसे ज़रा भारी हैं,

कुछ चल रही हैं, पर कुछ तो ये कम भी होंगी।।

दिलासा

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लिपटी रहती है चुप्पी, सर्द रातों के साये में,

गूंजती हैं खामोशियां, तन्हा रूह के परछाए में।

क़हर बर्पा सन्नाटों पर, जो तोड़ने लगे दम,

दिलासा ही दे जा तू, “फिर मिलेंगे हम”।।

This is when it’s been or it feels like an age when you’ve seen the other one. The nights have turned darker and more lonely. You want him/her to be with you even if you two are busy with anything (even not mutually inclusive), but just the sight of that person at an arm’s length is warm enough to keep you sane and feeling adored.

May these tough times pass by soon.

कुछ देर ठहर

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रुस्वा तो तूने करना ही है, कुछ देर तो ठहर।

बा-दस्तूर वस्ल-ए-यार मुमक़िन नहीं, कुछ देर तो ठहर।

जुदाई का आलम अगले मोड़ से है झाँक रहा,

झपक भर का ये साथ छीन नहीं, कुछ देर तो ठहर।

When you know that you two have different goals, responsibilities and approach to life: leading to a separation. but you still want to live one more moment with each other.

Glossary:

बा-दस्तूर = routine

वस्ल-ए-यार = meeting the beloved