याद

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सुलगती रहती है सुर्ख कोयले की आंच सी तेरी तलब।

कपकपांती सर्द में तेरी छुअन, ये रूह चाहती है।।

पर मोहताज नहीं तुझसे वस्ल के हम।

जब तू नहीं आती, तेरी याद आती है।।

Glossary:
छुअन = touch
वस्ल = catchup, meeting
मोहताज = dependent, slave to

बेसब्र

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दिखती है कतरों में, धुंधले ख़्वाब सी तू है।

नशा देती है शराब सा, नायाब भी तू है।।

बेसब्र इस क़दर कि तेरा आगोश तलाशूं, सुकून के लिए।

मेरा सुकून भी तू, ज़िद्द का सैलाब भी तू है।।

खो गए सवालात

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खो गए सवालात, तेरे नाम पे लगाए थे।

शिकवे – गिले कई हमने, दिल में दफनाए थे।

जो उतरे तेरी नजरों में, बस पिघलते रहे हम

मानो, जुगनू से पूछा – “तुम जगमगाए थे?”।।

We may have a hundred questions for someone close to us that we seek answers to. These questions, or grudges can pile up over time and compound due to the distance. May get a bit ugly too.

But as soon as you sit down – face to face – in peace with your coffee, things fall in place. You may realise that nothing was actually required to be fixed (at least not as huge a mess as you anticipated it to be).

Give yourselves some time.

The key – Just keep the communication going.

तू रू-ब-रू

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ना करूंगा तेरे आने का ज़िक्र, कि तेरी तरफ़ से पहल हो।

शहर दूर इतना भी नहीं तेरा, कि राह में दश्त या जबल हो।

आजा तू रू-ब-रू, होने दे पलकें भारी,

पर पलकें झपकने ना पायें, कि दीदार बे-ख़लल हो।।

Glossary:
दश्त = जंगल, forest
जबल = पहाड़, mountain
रू-ब-रू = आमने-सामने, face to face
बे-ख़लल = बाधा रहित, without any interruption

This is for the times when you are having a tough time in your own head for the distance is testing your patience.

It’s for the craving to affection and annoyance to adorable catching up.

Have faith. It shall be okay.