वक़्त देख कर

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नहीं पहनी घड़ी तेरी तस्वीर के सामने,
कहीं रुस्वा ना कर दूं, वक़्त देख कर।
चार बातें की उस से, तो ज़रा वक़्त थमा,
मुस्कुराया ज़रा, मेरा बख़्त देख कर।

निकले कुछ रोज़, फिर हफ्ते, अब महीने हुए,
ताज्जुब में हूँ, अपनी आज़ाद गिरफ्त देख कर।
निकलेगा फिर महताब, वहां भी, यहां भी,
शरमाएगा खुद ही, अपनी शिकस्त देख कर।

नहीं पहनी घड़ी तेरी तस्वीर के सामने,
कहीं रुस्वा ना कर दूं, वक़्त देख कर।

This is for the times when the world is locked down and two of you are not able to meet as often as you used to.
An expression of affection and craving!
Pictures really help. For some, talking to pictures too.

Pro Tip: Confide in moon 😉

Glossary –
बख़्त = Destiny
महताब = Moon

जज़्ब पर सवाल

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जज़्ब पर मेरे सवाल कर गए, जाते जाते।

खुशहाल था ज़हन मेरा, बदहाल कर गए, जाते जाते।

मासूम था वो कातिल, उसकी ख़ता नहीं, यारों!

हम भी तो मासूम के सवाल से मलाल कर गए, जाते जाते।

ग़लतफहमी

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माथे पर शिकन, सूरत मेरी सेहमी थी।

उंगलियों में कसक, सांसों में गेहमा-गेहमी थी।

जो समेटा उसने आगोश में, पल भर में बिखरी मैं,

“धड़कन ना बढ़ेगी” – ग़लतफहमी थी।

आयत

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चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।

पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।

वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,

पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।