हिज्र में हैं जनाब, ज़र्रा-ज़र्रा चुभन भी होंगी।
तेरे जाने से आंखे खुश्क हैं, पर नम भी होंगी।।
ना टूटने का क़रार याद है हमें, बस सांसे ज़रा भारी हैं,
कुछ चल रही हैं, पर कुछ तो ये कम भी होंगी।।
हिज्र में हैं जनाब, ज़र्रा-ज़र्रा चुभन भी होंगी।
तेरे जाने से आंखे खुश्क हैं, पर नम भी होंगी।।
ना टूटने का क़रार याद है हमें, बस सांसे ज़रा भारी हैं,
कुछ चल रही हैं, पर कुछ तो ये कम भी होंगी।।
करते हैं हम गिला, शिकायतें भी होती हैं।
बेतकल्लुफ, दिल तोड़ने की, रिवायतें भी होती हैं।
एकाएक कहते हैं वो कि आस-ए-वस्ल में हैं।
फिर शहर में उनके, बेशुमार इनायतें भी होती हैं।