चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।
पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।
वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,
पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।
चला जो सिलसिला-ए-वस्ल, रिवायत हो गई।
पढ़ना था जिसे किताब की तरह, वो आयत हो गई।
वो शख़्स जो ख़्याल है मेरी जुम्मे की शाम का,
पल मांगे उस से , सबाह–शब्ब की इनायत हो गई।
सन्नाटे में दमका, वो अक्स नहीं, चराग़ ही होगा।
क़त्ल कर निकला वस्ल में यार का, ना कोई सुराग ही होगा।
वो नायाब सोम है किसी और जहां के मयख़ाने की,
जो चख सके उसे लब मेरे, तो फ़राग़ ही होगा।
Glossary –
अक्स = reflection or image
चराग़ = oil lamp
वस्ल = meeting or union
सोम = alcohol
फ़राग़ = repose, freedom from care or business