ज़ालिम हैं हालत, कि तेरी गुफ्तगू से महरूम हूं।
होश में तू भी नहीं, भीड़ में मैं गुम हूं ।।
गुनाह हुआ जो वादा तोड़ा कि आंसू ना होंगे।
धड़कन तो ना रुकी, बस रूह से ज़रा सुन्न हूं।।
ज़ालिम हैं हालत, कि तेरी गुफ्तगू से महरूम हूं।
होश में तू भी नहीं, भीड़ में मैं गुम हूं ।।
गुनाह हुआ जो वादा तोड़ा कि आंसू ना होंगे।
धड़कन तो ना रुकी, बस रूह से ज़रा सुन्न हूं।।